Manmohan Singh death Latest Updates:पूर्व प्रधानमंत्री का अंतिम संस्कार कल दिल्ली के निगमबोध घाट पर किया जाएगा
Manmohan Singh death latest updates:पूर्व प्रधानमंत्री का अंतिम संस्कार कल दिल्ली के निगमबोध घाट पर किया जाएगा
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, जिनका 26 दिसंबर को निधन हो गया, ने भारतीय मध्यम वर्ग के आकार के विस्तार में बहुत बड़ा योगदान दिया है। 1990 के दशक की शुरुआत में वित्त मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उन्हें भारत के आर्थिक उदारीकरण के मुख्य वास्तुकार के रूप में देखा गया था। बाद में, उन्होंने एक दशक (2004-2014) तक प्रधान मंत्री के रूप में भारत की अर्थव्यवस्था को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

व्हाइट हाउस में गर्मजोशी भरा माहौल
वाशिंगटन में उस दिन मौसम बादलों और बारिश से घिरा हुआ था, लेकिन व्हाइट हाउस के अंदर माहौल बेहद गर्मजोशी से भरा हुआ था। भारत के प्रधानमंत्री वहां मौजूद थे। आठ मिनट की प्रेस वार्ता में मनमोहन सिंह और जॉर्ज बुश ने खूब एक-दूसरे की प्रशंसा की। डॉ. मनमोहन सिंह ने बुश के नेतृत्व को “इतिहास में महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक” बताते हुए भारत-अमेरिका संबंधों में उनकी भूमिका की सराहना की। बुश ने भी डॉ. मनमोहन सिंह की मित्रता और नेतृत्व की प्रशंसा करते हुए कहा, “आपने और मैंने हमारे देशों के बीच संबंध बदलने के लिए कड़ी मेहनत की है। भारत एक महान देश है और इसके उज्ज्वल भविष्य के लिए अमेरिका के साथ मजबूत संबंध आवश्यक हैं।”
परमाणु समझौता: एक ऐतिहासिक पहल
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2005 में शुरू हुए इस समझौते की जटिलताओं पर चर्चा करते हुए बुश ने कहा, “यह हमारे दोनों देशों के लिए मुश्किल भरा काम था, लेकिन इसमें आपके साहस की अहम भूमिका रही।” डॉ. मनमोहन सिंह ने परमाणु व्यापार पर लगे प्रतिबंध को “परमाणु रंगभेद” करार देते हुए कहा, “34 साल तक भारत को परमाणु सामग्री और रिएक्टरों के व्यापार से अलग रखा गया। इस प्रतिबंध को समाप्त करने का श्रेय राष्ट्रपति बुश को जाता है। भारत के लोग आपसे बहुत प्यार करते हैं, और आपने हमारे दोनों देशों को एक-दूसरे के करीब लाने के लिए जो कुछ भी किया है, वह इतिहास में दर्ज होगा…”
परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह छूट के बाद परमाणु प्रतिबंधात्मक व्यवस्था कैसे समाप्त होगी, इस बारे में बोलते हुए, मनमोहन सिंह ने कहा था, “34 वर्षों से, भारत परमाणु रंगभेद से पीड़ित है। हम परमाणु सामग्री, परमाणु रिएक्टरों, परमाणु कच्चे माल का व्यापार नहीं कर पाए हैं और जब यह प्रतिबंधात्मक व्यवस्था समाप्त होगी, तो मुझे लगता है कि इसका बहुत बड़ा श्रेय राष्ट्रपति बुश को जाएगा। और इसके लिए, मैं आपका बहुत आभारी हूं, श्रीमान राष्ट्रपति।”
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बयान पर राजनीतिक विवाद
हालांकि डॉ. मनमोहन सिंह के बयान, “भारत की जनता आपसे गहरा प्रेम करती है,” को लेकर राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया। वामपंथी दलों और बीजेपी ने इसे आड़े हाथों लिया। सीपीआई-एम के महासचिव प्रकाश करात ने कहा था, “हम जानते थे कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह राष्ट्रपति बुश के प्रेम में हैं, लेकिन इसमें भारतीय जनता को क्यों शामिल कर रहे हैं?” बीजेपी के प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने कहा था, “प्रधानमंत्री द्वारा की गई व्यक्तिगत प्रशंसा को भारत की प्रशंसा नहीं माना जा सकता।” वाम दलों ने तो परमाणु समझौते के मुद्दे पर यूपीए-1 सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। सीपीआई के राष्ट्रीय सचिव डी राजा ने भी इस बयान की आलोचना करते हुए कहा था, “ऐसे समय में जब बुश की रेटिंग उनके अपने देश में इतनी कम है, भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा ऐसा कहना ठीक नहीं है।”
तत्कालीन कांग्रेस मीडिया सेल के अध्यक्ष वीरप्पा मोइली ने प्रधानमंत्री की टिप्पणी का बचाव करने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी। जब उनसे पूछा गया कि सिंह बुश के प्रति अपनी भावनाओं के बारे में पूरी भारतीय आबादी की ओर से कैसे बोल सकते हैं, तो मोइली ने स्पष्ट किया कि यह बयान भारत के “सहिष्णु और मिलनसार” रवैये की अभिव्यक्ति मात्र था। उन्होंने तर्क दिया कि “भारत ने कभी भी नफरत की संस्कृति का पालन नहीं किया है – प्रधानमंत्री द्वारा ऐसा कहने में कुछ भी गलत नहीं है।”
बुश का सिंह के प्रति सम्मान
2009 में भारत दौरे के दौरान बुश ने मनमोहन सिंह की प्रशंसा करते हुए कहा, “प्रधानमंत्री एक बुद्धिमान नेता हैं। मैंने उनका नेतृत्व हमेशा सराहा है।” बुश ने भारत की आर्थिक उदारीकरण प्रक्रिया में डॉ. मनमोहन सिंह की भूमिका को भी सराहा।
एक ऐतिहासिक संबंध
डॉ. मनमोहन सिंह और जॉर्ज डब्ल्यू बुश के बीच संबंध भारत-अमेरिका कूटनीति के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुए। दोनों नेताओं की साझी कोशिशों ने भारत-अमेरिका संबंधों को नई ऊंचाईयों पर पहुंचाया। डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व को हमेशा उनकी इस ऐतिहासिक उपलब्धि के लिए याद किया जाएगा।